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आईये जानें शेयर बाजार को

शेयर बाजार  या शेयर मार्किट में पैसा बनाना बहुत आसान है उसी प्रकार शेयर बाजार में पैसा खोना भी बहुत आसान है। इससे बचा जा सकता है अगर आप स्वंय शेयर बाजार के बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करें,शोध करें और दूसरों के दिये टिप्स पर न जायें। शेयर बाजार एक खतरनाक खेल है, इसमें कूदने से पहले इसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी ले लेना बहुत आवश्यक है। मगर इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि शेयर मार्किट में निवेश करने के लिए कोई अलग तरह की प्रतिभा या योग्यता ही चाहिए. कोई भी कोशिश करके शेयर बाजार की जानकारी ले सकता है.

शेयर क्या होते हैं Shares in Hindi. शेयर का अर्थ है अंश यानी हिस्सा यदि आपके पास किसी कंपनी के शेयर है तो आप
उस कंपनी के उतने हिस्से के मालिक बन जाते हैं जितने शेयर आपके पास हैं. शेयर को हिंदी में अंश कहते हैं और शेयर होल्डर को अंशधारक. शेयर बाजार से शेयर खरीद कर आप भी वहां लिस्टेड किसी भी कंपनी के मालिक बन सकते हैं. आप जितना शेयर खरीदेंगे उस कंपनी में आप उतने ही हिस्से के मालिक बन जाएंगे. सभी शेयर कंपनी द्वारा घोषित किये गए सभी Dividend डिविडेंड अथवा Bonus Share बोनस शेयर के अधिकारी होते हैं.

किसी भी कंपनी को शुरू करने के लिए बहुत बड़ी पूंजी की आवश्यकता होती है यह बहुत कठिन है कि इतनी बड़ी पूंजी कोई एक व्यक्ति अपने पास से उस कंपनी में लगा सके यदि उस बड़ी पूंजी को छोटे-छोटे अंशों अथवा शेयरों में बांट दिया जाए तो बहुत से व्यक्ति उस कंपनी में हिस्सेदारी खरीदकर उस कंपनी के मालिक बन सकते हैं कोई भी व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार शेयर खरीद कर कंपनी के उतने ही हिस्से का मालिक बन सकता है जितनी उसकी क्षमता है. कोई भी व्यक्ति आसानी से किसी कंपनी के शेयर खरीद सके इसके लिए आवश्यक है कि वह कंपनी किसी ना किसी स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड हो. एक बार यदि कोई कंपनी किसी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड हो जाती है तो उस कंपनी के शेयरों की ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज में शुरू हो जाती है.

लिस्टिंग के बाद उस कंपनी के शेयरधारक अपने शेयर उस स्टॉक एक्सचेंज पर बेच सकते है तथा उस शेयर को खरीदने के इच्छुक व्यक्ति उस शेयर को उसी स्टॉक एक्सचेंज से खरीद सकते हैं. जब किसी कंपनी का शेयर आसानी से बिकने या खरीदने के लिए उपलब्ध रहता है तो उसे कंपनी की शेयरों की liquidity लिक्विडिटी अथवा तरलता कहा जाता है किसी भी शेयर की वास्तविक बाजार कीमत उसके फेस वैल्यू से अधिक अथवा कम हो सकती है और यह कीमत शेयर की मांग और पूर्ति पर निर्भर करती है. यह शेयर बाजार का साधारणता नियम है कि  जिस शेयर की मांग अधिक होती है उसकी कीमत बढ़ती है और जिस शेयर की मांग नहीं होती है उसे शेयर होल्डर बेचना चाहते है तो उस शेयर की कीमत घट जाती है

जो व्यक्ति अथवा व्यत्क्तियों का समूह किसी कंपनी को शुरू करने की योजना बनाते है उन्हें प्रमोटर कहा जाता है. प्रमोटर एक हिस्सा उन शेयरों में अपने पास रखते है और बाकी हिस्सा पब्लिक को पेश किया जाता है. जो हिस्सा प्रमोटरों के पास रहता है आमतौर पर वह हिस्सा शेयर मार्केट में ट्रेड होने के लिए नहीं आता. शेयर मार्केट में वही हिस्सा ट्रेड होता है जो पब्लिक के पास होता है.

आमतौर पर शेयरों में निवेश करने वाले को निवेशक कहा जाता है मगर बहुत से लोग डे ट्रेडिंग में काम करते है. मेरे हिसाब से वास्तविक  निवेशक वाही है जो शेयर खरीदने के बाद उसे कम से कम तीन वर्ष के लिए अपने पास रखें.

डे ट्रेडिंग में शेयर को खरीदने अथवा बेचने के बाद उसी दिन सौदे को वापस कर दिया जाता है. यानी कि यदि कोई डे ट्रेडर यह सोच कर की आज Reliance इंडस्ट्रीज का शेयर बढ़ने वाला है मार्केट में ट्रेडिंग के शुरुआत में उसे खरीद लेता है और मार्केट बंद होने से पहले ही वापस बेच देता है तो उसे डे ट्रेडिंग कहेंगे.

मेरे हिसाब से डे ट्रेडिंग बहुत ही खतरनाक खेल है और एक तरह से जुआ ही है इसलिए इससे अधिकतर निवेशकों को दूर ही रहना चाहिए. हो सकता है कि जब आप किसी ब्रोकर अथवा बैंक के पास अपना ट्रेडिंग अकाउंट खोलें तो वहां का स्टाफ आपको डे ट्रेडिंग के लिए निमन्त्रित करें. आप इस बात को समझ लीजिए कि आप जितनी बार भी ट्रेडिंग करेंगे तो ब्रोकर को अपनी ब्रोकरेज मिलेगी.

जरूरी नहीं है की हर सौदे में आपको प्रॉफिट ही हो इसलिए जब भी निवेश करें लंबी अवधि के बारे में सोच कर ही निवेश करें और अपने फैसले पर विश्वास रखें. बार बार शेयरों को स्विच करना फायदेमंद नहीं होता. हर तीन से छः महीने में अपने पोर्टफोलियो का आकलन जरूर कर लें.

पैनी स्टॉक्स Penny Stocks क्या होते हैं

पैनी स्टॉक्स Penny Stocks आम तौर पर उन शेयरों को कहा जाता है जो शेयर बाजार में बहुत ही कम कीमतों पर उपलब्ध होते हैं. इनका नाम शायद पैनी स्टॉक्स Penny Stocks इस लिए पड़ा होगा क्योंकि अमेरिका में एक डॉलर से कम कीमत पर उपलब्ध शेयरों को पैनी स्टॉक कहते हैं. भारत में दस रुपये से कम कीमत पर ट्रेड होने वाले शेयरों को पैनी स्टॉक्स Penny Stocks कह सकते हैं. इन्हें हिंदी में चवन्नी शेयर भी कहते हैं.

जैसा कि हमने बताया पैनी स्टॉक्स Penny Stocks बहुत ही कम कीमत पर ट्रेड होने वाले शेयर होते हैं. यह शेयर आमतौर पर छोटी कंपनियों के होते हैं जिनकी पूँजी बहुत ही कम होती है, अधिक बड़ी टर्नओवर भी नहीं होती है और अधिकतर ये कम्पनियां घाटे में चलती हैं या बहुत ही कम प्रॉफिट पर चलती हैं. ऐसे शेयरों में कंपनी के प्रमोटर  या उनके प्रतिनिधि ही अधिकतर ट्रेडिंग में लगे रहते हैं. झूठी या सच्ची खबरें छपवा कर इन शेयरों के दाम बढ़ा दिए जाते हैं.   यह शेयर बहुत ही कम वॉल्यूम में ट्रेड होते हैं इसीलिए कह सकते हैं कि इन शेयरों में लिक्विडिटी की समस्या रहती है. कम कीमत के कारण कई बार निवेशक इन में फंस जाता है मगर किसी के कहने पर ऐसे शेयरों में निवेश करना जोखिम से भरा होता है.

पैनी स्टॉक्स Penny Stocks में निवेश करें या नहीं

पैनी स्टॉक्स Penny Stocks क्योंकि बहुत कम कीमत पर मिलते हैं तो फिर इन में निवेश करने की इच्छा निवेशकों में रहती है. इनकी कम समय में कीमत बढ़ने की संभावना भी अधिक रहती है. कोई शेयर कम समय में अधिक रिटर्न भी दे सकता है. उदाहरन के लिए  कोई शेयर आप दो रुपये में खरीदतें हैं और वह शेयर यदि तीन रुपये का भी हो जाता है तो समझ लीजिये आपका निवेश पचास प्रतिशत बढ़ जाता है. मगर ऐसी ट्रेडिंग में जोखिम बहुत हैं. अकसर कीमत बढ़ने पर ट्रेडर तो मौके पर ऐसे शेयरों से निकल जाते हैं मगर कीमतें फिर वापिस आ जातीं हैं और निवेशक हाथ मलता रह जाते है. कभी कभी पैनी स्टॉक्स Penny Stocks में कोई टर्नअराउंड शेयर भी मिल सकता है यानी ऐसे शेयर जो कि घाटे से लाभ की और जा रहे हैं. यदि वास्तव में आप ऐसे किसी शेयर को पहचान कर निवेश करते हैं तो यह एक अच्छा निवेश भी साबित हो सकता है.

ऐसी कंपनी जिसका पिछला इतिहास अच्छा रहा हो और कुछ ख़ास परिस्थितियों के कारण घाटे में चली गयी हो मगर कंपनी के माल की बाज़ार में मांग हो, बड़ी कैपिटल और अच्छी सेल हो तो निवेश करने का जोखिम कम रहता है. कई बार बड़ा लोन लेने के बाद कई कम्पनियां ब्याज के बोझ से घाटे में चली जातीं हैं. कुछ समय बाद लिए गए लोन से अपने उत्पादों का विस्तार करके कंपनी की फिर से प्रॉफिट में आने की संभावना होने लगती है.  ऐसी कंपनियों के शेयर को टर्नअराउंड शेयर कह सकते हैं.

यदि आप नए निवेशक हैं और शेयर बाजार के नए खिलाडी हैं तो पैनी स्टॉक्स Penny Stocks या चवन्नी शेयरों से दूर ही रहें. यदि आप पुराने और जानकार निवेशक हैं तो टर्नअराउंड शेयरों की पहचान करके ही निवेश करें. अपने कुल पोर्टफोलियो का एक छोटा सा हिस्सा ही इनमें लगायें क्योंकि इनमें जोखिम बहुत होता है.

शेयर बाजार क्या है और कैसे काम करता है

जब भी हम किसी बाज़ार की कल्पना करते है तो हमारे दिमाग में किसी ऐसी जगह की इमेज बनती है जहाँ बहुत-सी दुकानें होंगी या कोई मॉल जहां जाकर आप खरीदारी कर सकते हैं मगर शेयर बाजार ऐसा बाजार नहीं है. शेयर बाजार में खरीदने और बेचने का काम पूरी तरह से कंप्यूटर द्वारा ऑटोमेटिक तरीके से होता है. कोई भी शेयर खरीदने या बेचने वाला अपने ब्रोकर के द्वारा एक्सचेंज  पर अपना आर्डर  देता है
और पलक झपकते ही पेंडिंग आर्डरों के अनुसार ऑटोमेटिकली सौदे का मिलान हो जाता है

शेयर बाजार में काम के घंटों में ब्रोकर अपने ग्राहकों के लिए उनके द्वारा दिए गए आर्डर टर्मिनल में डाल देते हैं.  इसके बदले में ब्रोकर को ब्रोकरेज या दलाली मिलती है.हम कह सकते हैं कि मुख्यतः  शेयर बाजार की तीन कड़ियाँ हैं स्टॉक एक्सचेंज, ब्रोकर और निवेशक.
ब्रोकर स्टॉक एक्सचेंज के सदस्य होते है और केवल वे ही उस स्टॉक एक्सचेंज में ट्रेडिंग कर सकते हैं. ग्राहक सीधे जाकर शेयर खरीद या बेच नहीं सकते उन्हें केवल ब्रोकर के जरिए ही जाना पड़ता है. 
देश में मुख्यतः  BSE यानी मुंबई स्टॉक एक्सचेंज और NSE यानी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज हैं जिन पर शेयरों का कारोबार होता है. अधिकतर कंपनियां जिनके शेयर मार्केट में ट्रेड होते हैं इन दोनों स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड है मगर यह भी हो सकता है की कोई कंपनी इन दोनों में से किसी एक ही एक्सचेंज पर लिस्टेड हों. देश के मुख्यता सभी बड़े बैंक या उनकी सबसिडी कंपनियां और अन्य बड़ी वित्तीय कंपनियां इन एक्सचेंजों में ब्रोकर के तौर पर काम करती हैं. ग्राहक इन ब्रोकर कम्पनियों के पास जाकर अपने डीमैट अकाउंट की जानकारी देकर अपना खाता ब्रोकर के पास खुलवा सकता है.  इस प्रकार ग्राहक का डीमैट एकाउंट ब्रोकर के अकाउंट से जुड़ जाता है
और खरीदी अथवा बेची गई शेयर्स ग्राहक के डीमैट अकाउंट से ट्रांसफर हो जाती हैं.  इसी प्रकार ग्राहक अपना बैंक खाता भी ब्रोकर के खाते के साथ जोड़ सकता है जिससे खरीदे अथवा बेचे गए शेयरों की धनराशि ग्राहक के खाते में ट्रांसफर की जाती है. ग्राहक द्वारा खरीदे गए शेयर इलेक्ट्रॉनिक रूप में उसके डीमैट एकाउंट में पड़े रहते हैं जब भी कोई कंपनी डिविडेंड की घोषणा करती है तो डीमैट अकाउंट से जुड़े
बैंक खाते में डिविडेंड की राशि पहुंच जाती है. इसी प्रकार यदि कंपनी बोनस शेयरों की घोषणा करती है तो बोनस शेयर भी शेयरहोल्डर के डीमैट अकाउंट में पहुंच जाते हैं. ग्राहक जब शेयर बेचता है तो उसी डीमैट अकाउंट से वह शेयर ट्रान्सफर हो जाता है. 
शेयरों में कारोबार करने के लिए एक निवेशक के पास डीमैट अकाउंट, ब्रोकर के पास ट्रेडिंग अकाउंट और उससे जुडा एक बैंक खाता होना जरूरी है. कई बैंक इसके लिए थ्री इन वन खाता खोलने की सुविधा भी देते हैं. अधिकतर ब्रोकर हाउस आपको ऑनलाइन शेयर ट्रेडिंग की सुविधा भी प्रदान करते हैं इसके अलावा आप फोन करके भी अपने ऑर्डर दे सकते है.

बुक वैल्यू क्या है

बुक वैल्यू क्या है Book Value in Hindi. यह समझ लेना भी बहुत आवश्यक है कि किसी शेयर की बुक वैल्यू क्या है. कह सकते हैं कि शेयर की वास्तविक वैल्यू या मूल्य उसका फेस वैल्यू ना हो कर उसका बुक वैल्यू है.  शेयर खरीदने से पहले शेयर के बाजार भाव की तुलना उसकी बुक वैल्यू से अवश्य करनी चाहिए. आम तौर पर बड़ी बुक वैल्यू को कंपनी के अच्छे आर्थिक सेहत की निशानी माना जाता है.

बुक वैल्यू वास्तव में कंपनी के खातों में वह वैल्यू है जो की किसी कंपनी को यदि बेचा जाए तो उसकी संपत्तियों से देनदारियां घटा कर प्रति शेयर कितना भुगतान प्राप्त होगा. किसी शेयर की बुक वैल्यू उसकी शेयर कैपिटल और जनरल रिज़र्व के जोड़ को कुल शेयरों की संख्या से विभाजित करके भी प्राप्त किया जा सकता है.

इसे एक उदाहरण से समझते हैं. यदि अबस कंपनी के दस रुपये प्रति शेयर के एक करोड़ शेयर हैं यानी उसकी  दस करोड़ रुपये की शेयर कैपिटल से शुरुआत हुई है. अब एक साल बाद अबस कंपनी को दो करोड़ रुपये का लाभ हुआ है तो कंपनी की संपत्ति एक साल बाद बारह करोड़ रुपये हो जायेगी. उसी प्रकार दो करोड़ का लाभ (माना कंपनी ने कोई लाभांश नहीं दिया है) जनरल रिज़र्व में जुड़ जाएगा. अब शेयर कैपिटल और जनरल रिज़र्व के जोड़ यानी बारह करोड़ को जब शेयरों की संख्या यानी एक करोड़ से विभाजित करेंगे तो प्रति शेयर शेयर बुक वैल्यू बारह रुपये प्राप्त होगी. इसी प्रकार प्रति वर्ष जब कंपनी लाभ या हानी  कमाती जायेगी तो शेयर की बुक वैल्यू बढ़ती या घटती  जायेगी.

आम तौर पर शेयर बाजार में किसी शेयर की कीमत उसकी बुक वैल्यू से अधिक होती है क्योंकि निवेशक भविष्य में होने वाले लाभ की संभावना को देखते हुए शेयरों की खरीद करते हैं. कई बार यदि कंपनी प्रीमियम पर शेयर जारी करती है तो उस प्रीमियम को भी जनरल रिज़र्व में जोड़ दिया जाता है.

यदि किसी शेयर की बुक वैल्यू यदि उसके फेस वैल्यू  से बहुत अधिक है तो इसका मतलब है की कंपनी के पास जनरल रिज़र्व बहुत बड़ा है, ऐसे में उस कंपनी के बोनस शेयर जारी करने की संभावना भी हो सकती है. जनरल रिज़र्व पिछले सालों के प्रॉफिट या बेचे गए शेयरों के प्रीमियम से बनाता है.

BVPS Ratio : किसी शेयर के बाजार कीमत और बुक वैल्यू के अनुपात को BVPS Ratio कहते हैं. इससे निवेशक बाजार में शेयर के बढ़ सकने की संभावना का अंदाज लगाते हैं. BVPS यानी Book Value Per Share. इसकी गणना शेयर के बाजार भाव को शेयर की बुक वैल्यू से विभाजित करके प्राप्त की जाती है. बारह रुपये बुक वैल्यू के शेयर की कीमत यदि बाजार में चौबीस रुपये है तो उसका BVPS ratio 24/12=2 होगा.

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